Sunday, August 6, 2017

हिमालय में ट्रेकिंग : फूलों की घाटी (TREKKING TO HIMALAYAS - VALLEY OF FLOWERS)

हिमालय में ट्रेकिंग : फूलों की घाटी (TREKKING TO HIMALAYAS - VALLEY OF FLOWERS)

महाराष्ट्र की शैहाद्री पर्वत श्रखलाओं की कुछ चुनिन्दा पहाडियों में ट्रेकिंग का अभ्यास करने के बाद भारतीय स्टेट बैंक वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र मुंबई की हमारी ४० सदस्यीय टीम श्री ऍम महापात्रा उप प्रबंध निदेशक एवं मुख्य सूचना अधिकारी के नेर्तत्व में हिमालय में ट्रेकिंग के लिए फूलों की घाटी उत्तराखंड के लिए रवाना हुई.

पहला दिन – मुम्बई से रुद्रप्रयाग
मुम्बई से देहरादून (१३८० किमी) पहुँचने के बाद एअरपोर्ट से सीधे रुद्रप्रयाग  के लिए गाडियों निकल पड़े . ये दूरी लगभग 160 किमी है जो ५-६ घंटे पूरी होती है. पूरा रास्ता हरियाली से ओतप्रोत है और पहाड़ो और घाटियों के द्रश्य बेहद मनोरम हैं. अनगिनत झरने मन मोह लेते हैं.  रूद्र प्रयाग  में रात्रि विश्राम हेतु रुकते हैं .

दूसरा दिन – रुद्रप्रयाग से घांघरिया
रुद्रप्रयाग  से सीधे जोशी मठ के लिए रवाना हो गए . रास्ते में चाय पान के बाद गोविन्द्घाट और फिर वहा से शुरू हुई ट्रैकिंग. जो यात्रा का आख़िरी पड़ाव जिसे कार से पूरा किया जा सकता है. गोविन्दघाट से  ४ किमी ऊपर एक गाव है जहाँ से ९-१० किमी की चढ़ाई के बाद घाघरिया पहुँचना था . ये चढ़ाई लगातार चलती हुयी ३०४९ मीटर की ऊंचाई पर स्थिति घाघरिया पहुंचती है. हेमकुंड जाने वाले श्रद्धालु भी यहाँ पहुँच कर रुकते हैं. देहरादून से शुरू हुई  ये यात्रा निरंतर मनोरम पहाडियों और घाटियों से होकर गुजरती है और बहुत ही चित्ताकर्षक दृश्यों और प्रकृति का सुंदर चित्रण करती हैं. ये देव भूमि है और इसे ऐसा चित्ताकर्षक होना ही चाहिए. कई जगह भूस्खलन प्रभावित, बहुत खतरनाक रास्तो से गुजरना पड़ा शायद इनमे से बहुत से  मानव निर्मित है और प्रकृति  का अंधाधुन्ध दोहन और दुरुपयोग रेखांकित करते हैं. हमारी टीम ने अनेक जगहों पर रूक कर फोटोग्राफी की. वैसे तो दुनिया में बहुत ऊचे ऊचे पर्वत है लेकिन हिमालय जैसा महान और देव तुल्य कोई भी नहीं कहीं भी नहीं .

घाघरिया जाने के लिए ९ किमी लम्बा  ट्रेकिंग का रास्ता बहुत मुश्किल नहीं पर  बहुत ज्यादा और लगातार चढ़ाई वाला है जो थकान देता  है और लगातार ऑक्सीजन के कम होते लेवल से जल्दी साँस फूलने लगती है . रास्ते के द्रश्य बहुत अच्छे और फोटोजेनिक  है जिनसे थकान दूर हो जाती हैं .

तीसरा दिन – घांघरिया से फूलों की घाटी और वापस घांघरिया
घघरिया से सुबह ६ बजे हमलोग फूलों की घाटी के लिए चल पड़े. बेहद खतरनाक चढ़ाई और छोटे बड़े उखड़े पड़े पत्थरों से मिल कर बना  रास्ता ४ किमी लम्बा है. इस पर सामान्य रूप से चलना दूभर है. हर कदम बहुत सोच समझ कर बढ़ाना होता है और हर कदम पर  ध्यान केन्द्रित करना होता है  अन्यथा जरा सी असावधानी से सैकड़ो / हजारो फीट नीचे गहराई में जा सकते है. पिछली आपदा के समय जो रास्ता था वह तहस नहस हो चुका था इसलिए एक नया रास्ता निकाला  गया है जिसमे पत्थर बहुत नुकीले और ठीक से जमे नहीं है और बहुत सीधी चढ़ाई है कई जगह ७० से ८० डिग्री तक. इसलिए चलना बहुत थकान देता है. 

अनंतोगत्वा हम फूलों की घाटी में सफलता पूर्वक पहुँच गए. लगभग १०००० फीट ऊंचाई पर हिमालय की गोद में ८७-८८ वर्ग किमी मे फ़ैली इस घाटी को १९८२ में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया है. यूनस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित कर रखा है. वास्तव में यहाँ आकर  दिव्यता का अहसास होता है ये देव भूमि का नंदन कानन है. चारो ओर सुंदर फूल, पत्ते, पर्वत की बर्फ से सजी चोटियाँ, निर्झर गिरते झरने, पास से गुजरते बादल और मलायागिरी से  मंद मंद आती सुगन्धित हवाये . इतना प्राकृतिक सौंदर्य कि पलक झपकाने की सुधि  बुध नहीं, चित्त शांत और मन स्थिर हो जाता है . शायद इसीलिये तपस्या के लिए ऋषि मुनि ऐसी ही जगहों का चयन करते रहें होंगे. इस घाटी में हम केवल ३ किमी लम्बी और लगभग १/२ किमी चौड़ी घाटी में घूम सकते हैं .   

ऐसा माना जाता  है हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने  इसी घाटी में आये  थे। चमौली जिले में एक ऐसा भी गाँव बताया जाता है जहाँ के लोग आज भी हनुमान जी के बारे में बात करना या उनकी फोटो देखना तक पसंद नहीं करते. क्योंकि उनके अनुसार हनुमान जी की संजीवनी  के चक्कर में अन्य जडी बूटियों का  बहुत नुकसान हुआ. स्थानीय निवासी इसे परियों और किन्नरों  का  देश समझने के कारण यहाँ आने से कतराते थे. रामायण और अन्य ग्रंथो में नंदन कानन के रूप में इस घाटी का उल्लेख किया गया है . इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश  पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ  ने लगाया था इसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ ने 1937 में आकर  इस घाटी में काम किया और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब लिखी. फूलों की ये  घाटी  चारो ओर बर्फ से ढके  पर्वतों से घिरी है. फूलों की 500 से भी अधिक प्रजातियां यहाँ पाई जाती हैं जिन्हें विभिन्न उपचारों में औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता है. अनगिनत जडी बूटियों का भंडार यहाँ है . पूरे विश्व में इस तरह सुंदर और उपयोगी की कोई अन्य जगह नहीं है यहाँ तक कि स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया सहित  सभी   देशों की प्राक्रतिक सुन्दरता इस के आगे कुछ भी नहीं है . टीम में स्टेट बैंक के बरिष्ठ अधिकारियो, जो विश्व के कई देशों में कम कर चुके और अनेक देशों की यात्रा कर चुके है, का स्पष्ट मानना है कि विश्व में इससे सुंदर कोई जगह नहीं है. और यहाँ आना ..... वास्तव में बहुत ही रोमांचक अनुभव है. अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आपको काले हिमालयन भालू, कस्तूरी हिरण और तितलियों व् पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां भी देखने को मिल सकती हैं . हमने तितलियाँ  और  पक्षी तो देखे लेकिन भालू, तेंदुए और कस्तूरी हिरन देखने को नहीं मिले. भोजपत्र के वृक्ष रास्ते में आपको मिलेंगे जिन का  प्राचीन समय में लिखने हेतु प्रयोग होता था.  
नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन सहित बहुत से फूल खिलते हैं. हैं। हमारी गाइड ने बताया कि यहाँ पाये जाने वाले फूलों में एनीमोनजर्मेनियममार्शगेंदाप्रिभुलापोटेन्टिलाजिउमतारकलिलियमहिमालयी नीला पोस्तबछनागडेलफिनियमरानुनकुलसकोरिडालिसइन्डुलासौसुरियाकम्पानुलापेडिक्युलरिसमोरिनाइम्पेटिनसबिस्टोरटालिगुलारियाअनाफलिससैक्सिफागालोबिलियाथर्मोपसिसट्रौलियसएक्युलेगियाकोडोनोपसिसडैक्टाइलोरहिज्मसाइप्रिपेडियमस्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान आदि  प्रमुख हैं। प्रत्येक मौसम में यहाँ अलग तरह के फूल खिलते है पर सबसे अच्छा मौसम जुलाई से सितम्बर का होता है.
हम तय समय के अनुसार फूलों की घाटी से वापस चल दिए और घांघरिया आ गए. शाम को इको डेवलपमेंट कमिटी भ्युन्दर द्वारा घाटी में किये जा रहे स्वच्छता सफाई और जागरूकता अभियान और  सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर किये गए  प्रस्तुतीकरण देखे. ये गैरसरकारी संगठन घाटी के पर्यावरण संरक्षण में बहुत अच्छा कार्य कर रही है .
चौथा दिन – घांघरिया से औली गाँव
चौथे दिन सुबह हमलोग घांघरिया से वापस  गोविन्दघाट के लिए चल पड़े . लगभग  तीन  घंटे की ट्रेकिंग के बाद हमलोग वापस गोविन्दघाट पहुँच गए. वहां हमारी गाड़िया खडी थी. गोविन्द् घाट  से हमलोग  जोशी मठ पहुंचे और भगवान बद्री विशाल के दशनो के लिए पहुँच गए . मंदिर के कुंड के गर्म पानी में नहाने से सारी थकान दूर हो गयी. दर्शन और पूजन के बाद हमलोग सीमा के अंतिम गाँव माना  पहुंचे जहाँ जहाँ गणेश गुफा , व्यास पीठ के आलावा भीम पुल स्थिति है जो बेहद आकर्षक है . कहते है जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे रास्ते में भागीरथ  नदी थी जिसे पार करने के लिए भीम ने एक शिला नदी के ऊपर डाल दी जिसे भीम पुल कहते हैं . यहाँ मोहक झरना है और बेहतरीन दृश्य. और भारत की सीमा  की आखिरी चाय की दुकान . वहां से हमलोग औली गाँव में एक रिसोर्ट में ठहरने के लिए चल पड़े.  औली से नंदा देवी चोटी के आलावा चारो तरफ पर्वत श्रंखलाये दिखाई देती है. प्रकति की बहुत ही  मनमोहक छटाये बिखरी है चारोतरफ.
पांचवा दिन – धुली गाँव से ऋषिकेश
औली में रात्रि विश्राम के बाद सुबह हमलोग ऋषिकेश के लिए चल पड़े और उद्देश्य ये कि परमार्थ आश्रम की आरती देख सकें जो प्राय: ६:३० बजे होती है. पूरे रास्ते मनमोहक घाटियों और वादियों का आनन्द उठाते हुए और कई जगह भूस्खलन और उसके कारण लगे जाम के कारणों को समझते हुए आगे बढ़ते रहे. मै कई बार पर्वतो की यात्रा पर गया हूँ और हर बार कुछ नया पाता हूँ. रास्तों पर चलते हुए पिछली यात्रा में मैंने एक कविता लिखी थी वह याद आ गयी 

रिश्ते प्यार के
और रस्ते पहाड़ के ,
आसान तो बिल्कुल नही होते,
कभी धूपकभी छाव ,
कभी आंधीकभी तूफान,
तो कभी साफ आसमान नहीं होते ।  
थोड़ी सी बेचैनी से
सैलाब उमड़ पड़ते है अक्सर,
आंखे भी निचोड़ी जाय,
तो कभी  आँसू नहीं होते ,  
(पूरी कविता पढने के लिए नीचे दिया लिक क्लिक करें) h
 https://shivemishra1.blogspot.in/2013/10/blog-post_2895.html
छठवां दिन – ऋषकेश में योग और वापसी
अभियान के छठवें दिन हमारा दिन ऋषिकेश के एक प्रतिष्ठित योगाश्रम में योग शिक्षा से शुरू हुआ . हमने ध्यान,योग, और शारीरिक और मानसिक स्वस्थ रहने के विभिन्न  आयाम सीखे. गंगा स्नान के बाद हम लोग मुंबई आने के लिए एअरपोर्ट चल दिए.
कुछ फोटो -----





































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Thursday, October 22, 2015

आप सभी को विजय दशमी की हार्दिक सुभकामनाएँ

   









मा दुर्गा के मंत्र 

१.       नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै  सततं  नमः .
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणिता:स्मताम .. 

२.       या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मीरुपेण संस्थिता .
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै  नमो नमः ..

३.       या देवी सर्व भूतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता .
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

४.       या देवी सर्व भूतेषु मातृरुपेण संस्थिता
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

५.       जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी.
   दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नामेस्तु ते..

६.       देहि सौभाग्यमारोग्यम देहि में परम सुख़म .
रुपम देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ..

७.       सर्व मंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके .
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते ..

८.       सर्व बाधा विनुर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वित:
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ..

९.       शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे .
सर्वस्यर्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ..

१०.    सर्वबाधाप्रश्मनं त्रिलोक्यस्याखिले श्वरि .
एवमेव त्वया यर्मस्मद्वैरि  विनाशनम ..

*******शिव प्रकाश मिश्रा ***********


Thursday, June 19, 2014

अटूट रिश्ता...... टूटता सा ......!

मन भटकता है,

रह रह कर ,

कभी यहाँ कभी वहां,

पता नहीं कब ? कब ? कहाँ ? कहाँ ?

बचपन ...और अपने गाँव की नदी के  किनारे..,

घूमते थे जहाँ शाम सबेरे,

और दोस्तों के साथ खेलते थे,

प्यास लगने पर

नदी का पानी पीते थे,

कभी शेर बनकर,

कभी मछली बनकर,  

तो कभी चुल्लू  लगा कर,

नहाते थे दिन में कई कई बार,

छूने, पकड़ने और छिपने के

कितने ही खेल खेलते थे,

नदी के पानी में,

और लोटते थे,

नदी की गोद में फ़ैली बालू में, 

नंगे पाँव चलते थे,

छप छप करते थे,

उथले पानी में,

कितने पिरामिड खड़े किये

बालू में

और कितनी ही आकृतियाँ बनाई,

कितने ही चींटी चींटों को कागज की नाव पर

नदी की सैर कराई,

कितने ही जल युद्ध होते थे,

पानी के थपेड़ों से,

एक दूसरे से,

सरोबोर होते थे हम सभी,

तैरने की  प्रतियोगिताएं भी होती थी कभी कभी,

जीतते थे,

हारते थे,     

पर कभी नहीं थकते थे,

कितने ही खजाने ढूँढ़ते थे ,

हम सब मिलकर,

गोताखोर बनकर , 

डुबकी लगा लगा कर,

सीपी, शंख,रंगीन सुंदर पत्थरों के टुकड़े,

और कुछ पुराने सिक्के मुड़े तुड़े,

आज भी मेरे पास अमानत है,

जो नदी से मेरे बचपन के रिश्ते की विरासत है,

ये हर चीज करती है खुद बयानी,

उस नदी की अनोखी, अनकही कहानी,  

जब बाढ़ आती थी,

लगता था जैसे

हम समुद्र के किनारे बस जाते थे

पानी की हिंसक लहरे,

और आर्तनाद करती भवरें,

दिल में अनगिनत उतार चढाव और कौतूहल भर जाते थे,  

हर रोज हम बाढ़ नापते थे,

और सरकंडे गाड़ कर बाढ़ रोकते थे,

हम इसमें सफल होते थे,

ऐसा मान कर बहुत खुश होते थे,   

पुल नहीं था,

पर गाँव में  किसी को इसका गम नहीं था,

निकसन काका की नाव शायद इसीलिये बनी थी,

जो जरूरतों  की अकेली रोशनी थी,

पैदल हो या साईकिल,

बकरी हो या भेड़

सबको इसकी जरूरत थी,

एक अटूट रिश्ते  से,

हम सब जुड़े थे,

अपने गाँव की इस सुंदर नदी से,

कई दशक बाद आज मै लौटा हूँ

उसी नदी के किनारे,

और ढूड रहा हूँ,

अपने अतीत के रिश्ते की वह कड़ी,

जिसकी नीव थी कभी यहीं पड़ी,

कभी सोचा भी न था कि

समय की सुई इतनी घूम जायेगी,

कि इस रिश्ते की जान पर बन आयेगी,     

मेरे बचपन की ये दोस्त और मेरी ये रिश्तेदार,

कृषकाय हो रही है, 

मलिन हो बीमार हो रही है,  

और सूख रही है

जगह जगह से,

शायद आख़िरी कड़ी भी टूट रही है

इस रिश्ते की

इससे....

हम सबसे .....!

********  

--शिव प्रकाश मिश्रा

  हम हिन्दुस्तानी

Monday, October 14, 2013

धन्यवाद


बहुत कृतघता
 
और विनम्रता से,

मन की ऊंचाइयों और

दिल की गहराइयों से,

मेरा प्रथम धन्यवाद,  

उन व्यक्तियों को,

जिन्होंने मुझे जीवन दिया

और मेरे माता-पिता

बनने का दायित्व ग्रहण किया,

संतान बनने का

सौभाग्य मुझे दिया,

रिश्तों का बोध दिलाया,

माँ की महानता और

बाप की विशालता

का अहसास कराया,

पालन पोषण किया,

वह सब कुछ दिया ,

मेरे विचार मे,

जो चाहिए था,

एक अबोध अजनबी अनजान को,

इस संसार मे॰  

ममता, प्यार, दुलार,

भाषा और संस्कार,

मानव मूल्य, शिक्षा और सुविचार,

और दिया पूरा घर संसार ॰   

 

धन्यवाद !

मेरे पितामहों, प्रपितामहों और पूर्वजों को भी,

जिनके अंश है मेरी संरचना में भी,

और रोम रोम मे हैं साकार,

उनके  

वैज्ञानिक आविष्कार ,

विकाश के प्रयासों की आधारशिला,

जीवन के सूत्र और जीने की कला,

शक्ति, सामर्थ्य और ईश्वर मे आस्था,

प्रकृति से संबंध और धार्मिक व्यवस्था ,

उनकी

सनातन परंपरा अक्षुण्ण और ज्वलंत है,

जो आज भी

हम सब के अंदर जीवंत है ॰॰

 

धन्यवाद !

परमात्मा का,

ईश्वर का,

या उस अदृश्य शक्ति का, 

जिसने हमें वह सब कुछ दिया,

जो कल्पना से परे है,

ये गंगा सी निर्मल, पावन नदियां,

मनमोहक, मनोरम, स्वर्गसम वादियाँ, 

ये बादल, ये झरने,

ये असीमित आसमान,

ये हिमालय से पर्वत,

ये मरुस्थल और रेगिस्तान

ये सर्दी, ये गर्मी, ये वर्षा और बसंत,

ये फल, ये फूल, ये पत्ते और अनंत,

ये सूर्य की रोशनी

और चन्दा की चाँदनी,

ये सितारों का उपवन

जैसे  झिलमिल छावनी,

ये मनमोहक छटाये,  

मलयागिरि से आती 

सुंदर सुरभि हवाएँ,

और सावन की घटाएँ,   

ये फूलों से पटी घाटियां,  

फलों से लदी डालियाँ

ये वनस्पतियाँ,

ये अनोखे दुर्लभ जीव जन्तु

अनगिनत खनिज, अनमोल रत्न,

और ये लहलहाती फसलें,

कहने को हम कुछ भी कह लें,

पर माँ की तरह

सबका पालन करती है

ये पृथ्वी और   

अपने आँचल में धारण करती है  

पर्वत  की ऊंचाई और

सागर की गहराई

मेरे लिए ,

हम सब के लिए,

और समूची मानवता के लिए,

बहुत बहुत धन्यवाद !

इसके लिए ॰॰॰  

 

काश !

सब को हो इसका अहसास ,

कि

कितना कुछ है खास,

हम सबके पास,

पर हम भटकते है मृग की तरह,

उन कामनाओं के लिए

जीवन मे जिंनका कोई अंत नहीं,

खोजते हैं तृष्णा के रास्ते ,

और संतुष्ट होते नहीं ॰

शोक करते हैं, उसके लिए,

जो नहीं होता हमारे लिए निर्धारित,     

क्यों बनते हैं हम ?

कृतघ्न, अशिष्ट और अमर्यादित॰

धन्यवाद !

भी नहीं देते उसको,

जिसने इतना कुछ दिया है,

और बदले में कुछ भी नहीं लिया है ॰

भूख का महत्व हो सकता है,

जीवन के लिए,

पर जीवन क्यों अपरिहार्य हो ?

भूख के लिए ॰

हमें सीखना चाहिए,

खुश रहना चाहिए,

जो मिला है, पर्याप्त भले न हो,

पर कम नहीं है, जानना चाहिए,

हम पूर्ण संतुष्ट भले न हों,    

पर

धन्यवाद !

तो देना चाहिए ॰ ॰ ॰ ॰

-    शिव प्रकाश मिश्रा
 
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हिमालय में ट्रेकिंग : फूलों की घाटी (TREKKING TO HIMALAYAS - VALLEY OF FLOWERS)

हिमालय में ट्रेकिंग : फूलों की घाटी ( TREKKING TO HIMALAYAS - VALLEY OF FLOWERS ) महाराष्ट्र की शैहाद्री पर्वत श्रखलाओं की कुछ चुनिन्द...